किमत
कविता-किमत
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शाह टूटकर,है बिका
खड़ी दीवारों का मोल नहीं
खड़े खड़हर बने स्मारक
ईट मलबे का कोई भाव नहीं,
पहचान होगी तब तेरी
जव नीवं में होगी जान तेरी
बिखर कर चलना परिणाम देख ले
जो शिखर पर ईट लगे थे,
जा उनका हाल पूछ ले,,
एक परिंदे ने रौंद दिया
छीनी हथौड़े से तोड़ दिया
पैरों से रौद रहा मजदूर भी
कीमती संगमरमर को भी फेंक दिया
खुद के निर्माण में खुद को झोंक दो
हर परिस्थिति में आपका मोल हो,
अशिक्षित इंसान भी समझे आपको
जग-जन पथ पे ऐसा आपका रोल हो,
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ऋषि कुमार ‘प्रभाकर’