Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Jan 2024 · 2 min read

किन्नर व्यथा…

हमें भी तो जना तुमने, पिता का खून थे हम भी।
कलेजा क्यों किया पत्थर, सुनें तो माँ जरा हम भी।
दिखा दो एक भी ऐसा, कमी कोई नहीं जिसमें,
अधूरे हम चलो माना, कहाँ पूरे रहे तुम भी।

हमें किन्नर कहा जग ने, किया सबसे अलग हमको।
किया छलनी सवालों से, कहा बंजर नसल हमको।
हमें घर से निकाला क्यों, दिए आँसू खुशी लेकर,
हमारे वो खुशी के पल, करो वापस कभी हमको।

हमारे दर्द के किस्से , सुनेगा क्या जमाना ये।
हमें आँसू दिए भर-भर, हमें अपना न माना ये।
कहें भी क्या किसी से हम, यहाँ सब स्वार्थ में रत है,
खुशी में खूब गोते खा, भरें अपना खजाना ये।

खुशी जब-जब मिले तुमको, हमारा शुभ लगे आना।
खुशी में झूम कर सबकी, बजा ताली चले जाना।
हमारी एक ताली में, छिपे आँसू हजारों हैं,
तुम्हारी एक गलती का, उमर भर घूँट पिए जाना।

उड़ाकर नोट की गड्डी, भला कहते स्वयं को तुम।
गिनो आँसू हमारे भी, कभी फुरसत मिले तो तुम।
खुशियाँ छीन कर सारी, भिखारी ही बना डाला,
नपुंसक हैं अगर हम तो, कहो कैसे जनक हो तुम?

जने किसके कहाँ जनमे, नहीं कुछ ज्ञात है हमको।
यही दलदल हमारा घर, यही बस याद है हमको।
घुटी साँसें गले सूखे, नयन गीले भरे आँसू,
बजा ताली कमा खाना, यही सौगात है हमको।

कोख वही सेती है हमको,बीज वही पड़ता है हममें।
बिगड़ा मेल गुण-सूत्रों का, जो रह गयी कमी कुछ हममें।
लाडले हो तुम मात-पिता के, हम उनके ठुकराए हैं।
एक ही माँ के जाये हम-तुम, अंतर क्या तुममें हममें ?

जिस जननी ने जाया हमको, किया उसने ही हमें पराया।
जिस पिता का खून रगों में, उसे भी हम पर तरस न आया।
अन्याय समाज का अपनों का, जन्म लेते ही हमने झेला।
उलझे रहे नित प्राण हमारे, जीवन के सम-विषम में।

पूर्ण देह होकर भी रहते, कितने बंजर बीच तुम्हारे
हमें नजर भर देख सके न, दिए किसने दृग मीच तुम्हारे?
पहचान हमारी छीनने वालों, खुद को सर्वांग समझने वालों !
मन के चक्षु खोलो, दिखेंगे; श्वेत वसन पर कीच तुम्हारे!

माँ की ममता, मातृभूमि सुख, चख न पाए कभी हम।
दर्द को अपने दिल में समेटे, घुटते आए सदा हम।
फेर मुँह अनजान डगर पर, छोड़ा मात-पिता ने।
भार गमों का हँसते-रोते, ढोते आए सदा हम।

देवी-देव तुम मन-मंदिर के, तुम्हें जपेंगे तुम्हें भजेंगे।
तज देंगे हर सुख हम अपना, पर हम तुमको नहीं तजेंगे।
अपना कहकर हमें पुकारो, सीने से लगाकर देखो।
जनें न चाहे अगली पीढ़ी, सेवा मन से सदा करेंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

3 Likes · 145 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ.सीमा अग्रवाल
View all
You may also like:
प्रेमिका को उपालंभ
प्रेमिका को उपालंभ
Praveen Bhardwaj
शीर्षक:इक नज़र का सवाल है।
शीर्षक:इक नज़र का सवाल है।
Lekh Raj Chauhan
"मुरिया दरबार"
Dr. Kishan tandon kranti
सावन तब आया
सावन तब आया
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उल्फ़त का  आगाज़ हैं, आँखों के अल्फाज़ ।
उल्फ़त का आगाज़ हैं, आँखों के अल्फाज़ ।
sushil sarna
पर्यावरण
पर्यावरण
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
यह मत
यह मत
Santosh Shrivastava
दो घड़ी बसर कर खुशी से
दो घड़ी बसर कर खुशी से
VINOD CHAUHAN
হরির গান
হরির গান
Arghyadeep Chakraborty
तेरी नज़र से बच के जाएं
तेरी नज़र से बच के जाएं
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
" अधरों पर मधु बोल "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
സങ്കടപ്പുഴയിൽ.
സങ്കടപ്പുഴയിൽ.
Heera S
करतलमें अनुबंध है,भटक गए संबंध।
करतलमें अनुबंध है,भटक गए संबंध।
Kaushal Kishor Bhatt
दुःख बांटू तो लोग हँसते हैं ,
दुःख बांटू तो लोग हँसते हैं ,
Uttirna Dhar
वाचाल सरपत
वाचाल सरपत
आनन्द मिश्र
क्रांतिकारी किसी देश के लिए वह उत्साहित स्तंभ रहे है जिनके ज
क्रांतिकारी किसी देश के लिए वह उत्साहित स्तंभ रहे है जिनके ज
Rj Anand Prajapati
"दयानत" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
निभाना आपको है
निभाना आपको है
surenderpal vaidya
मैं इश्क़ की बातें ना भी करूं फ़िर भी वो इश्क़ ही समझती है
मैं इश्क़ की बातें ना भी करूं फ़िर भी वो इश्क़ ही समझती है
Nilesh Premyogi
मिलने को उनसे दिल तो बहुत है बेताब मेरा
मिलने को उनसे दिल तो बहुत है बेताब मेरा
gurudeenverma198
आरजू ओ का कारवां गुजरा।
आरजू ओ का कारवां गुजरा।
Sahil Ahmad
मान जाने से है वो डरती
मान जाने से है वो डरती
Buddha Prakash
तुम और मैं
तुम और मैं
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
2947.*पूर्णिका*
2947.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मैंने देखा है मेरी मां को रात भर रोते ।
मैंने देखा है मेरी मां को रात भर रोते ।
Phool gufran
इस तरह कब तक दरिंदों को बचाया जाएगा।
इस तरह कब तक दरिंदों को बचाया जाएगा।
सत्य कुमार प्रेमी
*बेफिक्री का दौर वह ,कहाँ पिता के बाद (कुंडलिया)*
*बेफिक्री का दौर वह ,कहाँ पिता के बाद (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
यह लड़ाई है
यह लड़ाई है
Sonam Puneet Dubey
L
L
*प्रणय*
धूल-मिट्टी
धूल-मिट्टी
Lovi Mishra
Loading...