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3 Sep 2022 · 1 min read

” किन्नर के मन की बात “

” किन्नर के मन की बात ”
तेरे जैसी ही मिट्टी से मैं भी बना ए मानव
भगवान की ही कलाकृति समझ तूं मुझे
हमेशा दूर दूर मुझसे फिर क्यों भागता है तूं
तेरे रब ने ही तो दी है दिव्य आकृति मुझे,
सुन बोल देख सकता हूं मैं तेरी ही तो तरह
क्यों लेकिन समाज फिर भी दुत्कारे मुझे
सभी करने लग जाते जन्म से ही नफ़रत
इन हरकतों से आख़िर तूं क्यों झिझकोरे मुझे,
दिव्यांग की ही तरह है एक अंग में विकृति
फिर क्यों तूं अपशकुन मानकर हराए मुझे
समाज में बराबरी का मैं भी हक हूं चाहता
अभद्र दृष्टिकोण संग क्यों तूं ललकारे मुझे,
मेरा भी मन करता कि संग सबके मिलकर रहूं
न्यारी ढाणी जंचाने को क्यों मजबूर करे मुझे
समझ मुझे भी तूं प्राणी दिव्यांग जैसा ही
मत लानत भरी नीरस जिंदगी जीने दे मुझे,
दिल धड़कता, गुदगुदी करता हृदय मेरा भी
कैसे किन्नर के जज़्बात पूनिया समझाए तुझे
जीवन मरण तो परमात्मा की धरोहर है बंदे
क्यों जीते जागते निर्जीव लाश तूं बनाए मुझे।
Dr.Meenu Poonia

Language: Hindi
5 Likes · 1 Comment · 507 Views
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