किन्नर(कुछ दोहे)
1
किन्नर सभ्य समाज से,बस ठुकराया जाय
बिना दोष के वह सज़ा, पूरे जीवन पाय
2
जब हर इक दिव्यांग को, मिलता घर में स्थान
फिर किन्नर को क्यों नहीं, मिले वही सम्मान
3
मिलता किन्नर को नहीं, कभी जगत में मान
दुत्कारे जाते सदा, जैसे कोई स्वान
4
बजा बजा कर तालियाँ, करते रहते बात
पर किन्नर की ज़िंदगी, होती काली रात
5
किन्नर के सम्मान को, सजग हुई सरकार
उसको मिले समाज में, ,अब सारे अधिकार
6
किन्नर को भी मानिए, ईश्वर का उपहार
उससे कभी न छीनिये, उसका घर परिवार
डॉ अर्चना गुप्ता
22.12.2023