किन्तु क्या संयोग ऐसा; आज तक मन मिल न पाया?
एक गीत
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कुण्डली को देख कर ही पण्डितों ने था मिलाया,
किन्तु क्या संयोग ऐसा; आज तक मन मिल न पाया?
गण मिले नाड़ी मिली थी
वर्ण भी अनुकूल ही थे,
वेद मंत्रों से हुआ
संबंध का आरंभ सुखकर।
वश्य राशि: लग्न तारा,
योग भी शुभकर सभी कुछ,
और उनसे था मिला
प्रारंभ का परिरंभ सुखकर।
रीति- रश्मों को निभाने में नहीं कोई कमी थी,
कौन सा वह योग ऐसा; आज तक मन मिल न पाया?
अष्टकूटों के गुणन में
गुण मिला सुंदर शुभग जो,
प्रेम के माधुर्य का
होता यही आधार अनुपम।
किन्तु कुछ दिन ही गये
क्यों लुप्त सा वह प्रेम पावन,
प्रीत के पर्याय में है
दृष्टिगत तकरार अनुपम।
चल रहे हैं पंथ एकल पर अनागत दिग्भ्रमित है,
कौन सा वह रोग ऐसा; आज तक मन मिल न पाया?
पंचदेवों को निमंत्रण
तीर्थ जल से घट प्रतिष्ठित,
वेद की अनगिन ऋचाओं
से बना संबंध अद्भुत।
यज्ञ की समिधा रही है
साक्ष्य परिणय की हमारे,
और सुचि उस यज्ञशाला
में बँधा यह बंध अद्भुत।
सङ्ग रहकर भी अभी तक हम बटोही हैं अपरिचित,
कौन सा दुर्योग ऐसा; आज तक मन मिल न पाया?
कुण्डली को देख कर ही पण्डितों ने था मिलाया,
किन्तु क्या संयोग ऐसा; आज तक मन मिल न पाया?
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (नादान)