किताब
“बयां करने को बहुत कुछ शब्दों से बता सकता हूं लेकिन पता नहीं क्यों ,बस उसके नाम के अक्षर जहन में आ जाने से ,एक अजीब ही बेचैनी पूरे शरीर मे भर जाती है,और फिर ना चाहते हुए भी हाथों की उंगलियां कलम को इतने जोर से जकड़ लेती है, मानो पूरी स्याही कोरे कागज पर उसकी निशानियां छोड़ने को बेताब हो।
“ना जाने कितने दिन,कितनी रातें और कितने एहसाह उसके पास ना होने पर भी पास होने की उपस्थिति दर्ज करा,बिना इजाज़त दर्द का एहसास दिला देते है।”
“फिर एक शाम समय ने उसी समय में पीछे धकेल दिया जिसका डर,कई दिनों की तेज धूप और कई रातों की काली गहराई ने जेहन में बहुत अंदर बैठा दिया था।”
“उस शाम बाहर जाने का मन नहीं था लेकिन “दोस्त की जिद और जरूरत” के वजह से घर से बाहर जाना जरूरी हो गया,
‘जिद’ रही एक किताब और ‘जरूरत’ किताब के नाम की।”
हम दोनों फिर पहुंच जाते है
“विविध किताबनामा”
अपने आपमें वो किताबनामा ना जाने इतनी सारी किताबों से भरा हुआ था मानो किताबे खुद कह रही हो कि जल्दी से ले जाओ हमे और पढ़ लो वो हर एक शब्द जिसमें एक उम्मीद हो,स्वतंत्र चेतना और आजादी की।
पहला ही कदम अंदर रखने पर मानों कुछ पुराने एहसास जाग जाते है और कुछ भी ना सोचते और समझते हुए एक किताब हाथों मे इस तरह से आ जाती है मानों मेरे हाथों को उसका पता मालूम हो।
दोस्त की “जिद और जरूरत”को नजरंदाज करते हुए किताब के पन्ने पलटना शुरू कर देता हूं,इसी बीच “एक आवाज़”,जो मेरे कानों तक पहुंचती है और ना चाहते हुए भी पन्नो को विराम देकर काउंटर पर होने वाली तीखी बहस की तरफ जाने पर मजबूर कर देती है।
एक लड़की, मैनेजर से नाराजगी में कहती है – “आपको “इस”किताब का ऑर्डर कितनी बार दे चुकी हूं, लेकिन हर बार की तरह यह किताब आपके किताबनामा से गायब हो जाती है,मानो किताब में पंख लगे हो!”
थोड़ा सा शर्मिंदा होकर मैनेजर कहता है – इतनी सारी किताबों के बीच भला कैसे मैं एक किताब को अलग से रख सकता हूं। बहुत सारे पाठक और ग्राहक आते जाते रहते है,मैं खुद पूरे समय यहां नहीं रहता।अब वह किताब कहां और किसके पास है,यह मैं कैसे बता सकता हूं!
इस बार कुछ शांत स्वर में लड़की- आपको ग्राहक की चिंता भले ना हो,लेकिन कम से कम किताबों की फिक्र होनी चाहिए।
“अबकी बार मैनेजर उत्तरहीन दशा मे पहुंच जाता है।मैनेजर का चेहरा उतर जाता है और लड़की का गुस्सा ही बस समझ आ पाता है,उसका चेहरा मैनेजर की तरफ होने पर भाव भंगिमा देखने नहीं मिलती।”
इसी बीच दोस्त मुझे बालकनी में देख लेता है और पास आकर अपनी” जिद और जरूरत” का दर्द बयां करने लगता है। फिर मैं उसे ग्राउंड फ्लोर पर किताब खोजने भेज देता हूं और फर्स्ट फ्लोर पर मैं फिर से पन्ने पलटने में व्यस्त हो जाता हूं।
विविध किताबनामा में बहुत स्वतंत्रता रहती है यहां किताबों के साथ समय बिताने पर किसी को कोई खास दिक्कत नही होती इस वजह से भी दोस्त के साथ यहां आ सका।
“किताब के शुरुआती चैप्टर अपने आपमे काफी आकर्षित और बहुत कुछ सच्चाई को समेटे रहने के कारण मुझे कुछ इस तरह से बांध के रखते है मानों यह किताब मेरी ही अतीत को शब्दों से बयां कर रही हो।”
कुछ देर बाद दोस्त फर्स्ट फ्लोर पर आकर कहता है-” भाई तुझे अगर अपने दोस्त की मदद नहीं करनी है तो सीधा बोल, यहां बैठ कर किताब पढ़ने में बिजी है,दिखता नहीं पूरा १ घंटा हो चुका है और तुझे मेरी चिंता तक नही है।”
गलती मेरी थी,मेरे ही सुझाव पर उस किताब के लिए हम लोग यहां पर आए हुए थे।
“अबकी बार दोस्त की जिद और जरूरत दोनों पूरे उबाल पर रहे,इस बीच आस-पास पढ़ने और किताब को ले जाने वाले हमारी तरफ कुछ इसी तरह देख रहे थे जैसे काउंटर पर लड़की और मैनेजर को देख रहे थे।”
इतना सुनाने और देखने के बाद दोस्त थोड़ा सा खुद पर संयम रख लेता है और मुझसे कहता है-चलो भाई,अब यहां मन नही लग रहा।
मैं भी “हां” में “हां” मिलाकर नीचे काउंटर पर पहुंच कर हाथ मे ली किताब की कीमत जैसे ही पूछता हूं,तभी मैनेजर जोर से चिल्ला उठता है,मैडम आपकी किताब मिल गई ,आपकी किताब…..
पूरा का पूरा विविध किताबनामा मैनेजर की फटी आवाज से गूंज उठता है।
जैसे ही लड़की काउंटर पर पहुंचने के लिए सीढ़ी से नीचे उतरने को होती ही है इसी बीच एक नज़र हम दोनों की मिलने पर उसके पैर रुक जाते है और किताब हाथ से कब ज़मीन पर गिर जाती है,मुझे पता ही नही चलता और फिर एक अजीब सी बेचैनी पूरे शरीर मे भर जाती है और फिर ना चाहते हुए भी इस बार सामने उसके होने पर बांहे उसको बांहों में लेने को बेताब हो जाती है लेकिन उंगलियां रोक लेती है और कलम की राह देखने लगती जैसे मानो पूरी स्याही को कोरे कागज पर उतारने की आबरू हो।
“इस बीच दोस्त के शब्दों के साथ साथ विविध किताबनामे में होने वाली सारी छोटी छोटी आवाजे कानों तक पहुंचने पर भी सुनाई नही देती।
हम दोनों अपनी अपनी जगह पर दूर से एक-दूसरे को देखते बस रहते है।
तभी मैनेजर उसके पास जाता है और कहता है ये लीजिए आपकी किताब- All about love…