किताब हूँ जैसे मै
किताब हूँ जैसे मै कोई खोलकर वो मुझे पढता ही गया,
हम थे ठहरे जहाँ आज भी खड़े हैं वहीँ पर नूरेनजर,
वो तो जैसे वक़्त की रफ़्तार की तरह बढ़ता ही गया,
कुछ तो सिद्दत थी उसकी मोहब्बत के अंदाज में जनाब,
दिल को समझाकर हार गए फिर भी वो धड़कता ही गया,