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16 May 2017 · 1 min read

किताब हूँ जैसे मै

किताब हूँ जैसे मै कोई खोलकर वो मुझे पढता ही गया,
हम थे ठहरे जहाँ आज भी खड़े हैं वहीँ पर नूरेनजर,
वो तो जैसे वक़्त की रफ़्तार की तरह बढ़ता ही गया,
कुछ तो सिद्दत थी उसकी मोहब्बत के अंदाज में जनाब,
दिल को समझाकर हार गए फिर भी वो धड़कता ही गया,

Language: Hindi
1 Comment · 710 Views
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