किताब-ए-जीस्त के पन्ने
किताब-ए-जीस्त के पन्ने उलटते रहते हैं ।
भरे तुफानों में जीवन सिमटते रहते हैं।
हुईं हैं आँखें उनींदीं तुम्हारी चाहत में,
तेरी जुदाई में करवटें बदलते रहते हैं।
कभी मिला न साहिल पे दिखा जो चंदा,
हाँ टूटे तारे से मेरे ख्वाब चटकते रहते हैं।
दिखाए तूने हसीं ख्वाब वो तो चूर हुए,
तेरे खतों को हम रोज़ पढ़ते रहते हैं।
कसा है खूब कसौटी पे दर्द ने नीलम,
कि तेरी याद में हम तो सिसकते रहते हैं।
नीलम शर्मा ✍️