किताबों में सूखते से गुलाब
किताबों में ये जो हैं न सूखते से गुलाब।
टूटते दिलों का सब रखते हैं ये हिसाब।
याद कराएं ये जवां दिलों की बेकरारी
देखता था दिल जब उनके सुहाने ख्वाब।
एक एक पंखुड़ी तोड़नी इंतज़ार में उनके
शायद वो नज़र आ जाए आज बेनकाब।
हर फूल उनको देने की चाह थी हमारी,
हमारी किस्मत ही थी बस खाना खराब।
कांटों में रह कर भी , ये फूल गुलाब के
संभाले फिरते हैं दिल की तमन्ना नायाब।
सुरिंदर कौर