किताबें
देखो किताबें बोलती हैं।
सुनाती कहानी
कभी कविता गुनगुनाती
बीते दिनों की वो याद दिलाती
बिखरे हुए पन्नो पर
है ये शब्दों का खेल
कभी रामू की गुड़िया
कभी छुक-छुक करती रेल
कभी हमको सिखाती
हंसाती, रुलाती
दुनिया की, देशों की
सैर कराती
कभी उपन्यास की दुनियां में
हमको ले जाती
कभी छन्द, लेख, निबंध बताती
अच्छे बुरे का एहसास कराती
ये बातें करती हैं,
इतिहास की, विज्ञान की
शिक्षा की और ज्ञान की
हमारी कल्पनाओं को पंख लगाती
उड़ने को पंख मजबूत बनाती
आगे बढ़ने की राह बतलाती
ये किताबें
दादी, नानी, परियों संग डोलती है।
देखो किताबें बोलती हैं।