किताबें
किताबें
किताबों से प्रेम
मुझे विरासत में मिला
अपने पिता से
इस प्रेम में
किताबें कभी लड़ीं
सखियों की तरह
कभी झुँझलाई मुझ पर
उन्हें जहाँ-तहाँ रख देने पर
कभी रूठी प्रेमी की तरह
बहुत दिनों बाद मिलने पर
अब तो वे प्यार से
सहलाती हैं बिल्कुल
मेरी माँ की तरह
दुविधा के क्षणों में
बन जाती हैं पिता
निर्णय लेने में मेरी
सहायता करने के लिए
साथ हँसती हैं रोती हैं गुनगुनाती हैं
ढेरों कहानियाँ सुना कर
मीठी गहरी नींद में सुलाती हैं
विरासत में मिली किताबें
हर रूप में मेरे साथ
सारे रिश्ते निभाती हैं
ये किताबें मेरे हृदय को
इतना अधिक भाती हैं
इनसे एक दिन न मिलूँ तो
श्वास नहीं ले पाती हूँ।
#डॉभारतीवर्माबौड़ाई