कितने बदल गये
क्यों दोष देते हो
अपने को देखो
कितने बदल गये..
आग ने पानी से
आँख ने आँसू से
दीये ने तूफ़ान से
धूप ने बादल से
रूप ने काजल से
हँसी ने अधरों से
शरीर ने चरित्र से
समझौता कर लिया
फिर भी, उलाहना
हम बदल गये…!!
नज़र नज़र का फेर है
अंधों के आगे बटेर है
रात काली भूलकर जो
अरुणिमा आँगन आई
बंटे हुए थे हिस्से सभी
कहीं सुनहरा आँचल
कहीं छांव का बादल
देखा, और चली गई।।
हमने अपने पिता से
और बेटों ने हमसे…
मांगा हक़ तो तौबा..!!
हम नहीं बदले
दुनिया बदल गई !!
सत्य का संधान करते
असत्य का चोला पहने
भेदकर मछली की आँखें
अर्जुन सरीखे बाण लिये
द्रोपदी को जुये में हारकर
क्या तुम नहीं बदले
या हम नहीं बदले..?
आत्मा काटती चिकोटी
बाँटती चीटियां रोटियां
अन्न प्राण का प्रश्न कहाँ
असुरक्षित हैं सब बेटियाँ
महाभारत के इस समर में
कौन बदला, बोलो न..?
हम बदले…?
तुम बदले..?
नज़र बदली..?
पिपासु नेत्रों ने सदा
स्त्री आवरण ही देखे
दोष परिवेश का कहूँ
कोख ने कौरव भी देखे
दृष्टि भेद से द्रष्टान्तर ही
कलियुग के पाप ढोता है
क्षमा करें.. मान्यवर सभी
सीने पर रखा हाथ ही..
अक्सर दगा देता है..?
अब कहो…
कौन बदला..?
सूर्यकान्त द्विवेदी