कितनी शांत यह सुबह !
अब तो भौर हो चली,
खिल उठी हर कली,
गगन में छुप गए सितारे,
हवा बहने लगी धीरे धीरे,
पंछी लगे चहचहाने,
पेड़ भी लगे लहराने,
पूरब में छा गई लालिमा,
जग में नया हर्ष छा गया,
कितनी शांत है यह सुबह,
न कोई विरह न कोई कलह,
रवि रथ से अपने पथ चला,
क्षितिज छोड़ आगे बढ़ चला,
धीरे धीरे जग में लगी होने हलचल,
हवा में करने लगा प्रदूषण घुलमिल,
जागो जागो मेरे देश के नौनिहाल,
देखो देखो क्या हो गया वतन का हाल,
लड़ रहे हम अपने अपनो से,
जाग उठो अपने सपनो से,
मोह माया का यह खेल निराला,
सबको बनना इक दिन निवाला,
प्रकृति चल रही अपनी गति,
धरा घूम रही अपनी गति
।।।जेपीएल।।। कितनी शांत यह सुबह !