*कितनी बार कैलेंडर बदले, साल नए आए हैं (हिंदी गजल)*
कितनी बार कैलेंडर बदले, साल नए आए हैं (हिंदी गजल)
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1)
कितनी बार कैलेंडर बदले, साल नए आए हैं
समय तुम्हारी लंबाई हम, नाप कहॉं पाए हैं
2)
गहरा कुहरा भारी सर्दी, ठिठुर रहा जब तन हो
धूप गुनगुनी किस्मत वाले, जाड़ों की खाए हैं
3)
कुछ प्रश्नों के उत्तर शायद, कभी न मिल पाऍंगे
जीवित खेल-खिलौने प्रभु ने, जग में बनवाए हैं
4)
रोग भरा जो तन के अंदर, बाहर आता पल में
किस्से ऐसे कितने जग में, सब ने गिनवाए हैं
5)
एक-एक कर पृष्ठ कैलेंडर, फटता गया निरंतर
अर्थ सहज आने-जाने के, इसने बतलाए हैं
6)
चाबी जितनी भरी गई थी, नाचा खूब खिलौना
कठपुतली के रंग पुराने, इसको यों भाए हैं
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451