: कितनी प्यारी सहज सरल हो… ( हिन्दी दिवस पर )
कितनी प्यारी
कितनी सुखद हो
पिक की बोली सी
कर्ण- मधुर हो
कितनी सहज, सरल हो तुम
झरते हैं फूल
शब्द-शब्द से तुम्हारे
गढ़े देवों ने सुघड़
स्वर-वर्ण तुम्हारे
रसबेलि, अनिंद्य विरल हो तुम
बसी हो दिल में
रग-रग में हमारी
निसार है तुमपे
जां भी हमारी
नहीं कोई पराई अपनी हो तुम
ख्वाबों में तुम हो
भावों में तुम हो
समृद्धि- खुशी में
अभावों में तुम हो
हर चेहरे की अरुणाई हो तुम
दुख में सुख में
हर करतब में
मिले जीवन के
हर अनुभव में
संग हमारे रोई-मुस्काई हो तुम
होश सम्हाला
जब से हमने
हर शुभ घड़ी
हर मुश्किल में
अधरों पे हमारे आई हो तुम
औपचारिकता भर
निभाते उससे
है जनम-जनम का
नाता तुमसे
सगी अपनी, माँ-जायी हो तुम
माँ के माथे की
कुमकुम बिंदी हो
तुम प्यारी हमारी
स्वर्णिम हिंदी हो
हर रूप में हमको भायी हो तुम
हँसी उड़ा रहे
जो भी तुम्हारी
देख के नादानी
उन अपनों की
क्यों आँख में आँसू लाई हो तुम
क्यों आँख में आँसू लाई हो तुम….
© अवनी अग्रवाल
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)