कितना हराएगी ये जिंदगी मुझे।
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कितना हराएगी ये जिंदगी मुझे।
हारता ही सही लक्ष्य से डिगा न पाएगी मुझे।
वेंटीलेटर पर ही सही जीवन के अंतिम सांस तक भले तड़पाएगी हमे।
हार की फितरत मंजूर नहीं मेरे व्यक्तिव को।
एक दिन खुद ही विजय का सिर आकर झुकाएगी ये जिंदगी मेरे सामने।
आनंद हर हालात को झेलने को तैयार है।
भले ही चारो ओर फैला हाहाकार है।
निराशा की घटाए छाए हुए हाल बेहाल विकराल है।
लेकिन तुम्हे नही पता आनंद अंधेरे के बाद निकलने वाला दिवाकर है।
RJ Anand Prajapati