कितना बदल गया हूँ मैं कहते हैं लोग सब
कितना बदल गया हूँ मैं कहते हैं लोग सब
कितनों ने मुझे बदला मतलब बिना मतलब।
पैरों के महंगे जूतें दिखते हैं अब सभी को
थे नंगें मेरे पाँव जब अँधे थे लोग तब।
उस वक़्त फिसलता था हँसते थे लोग सब
इस वक़्त मेरा गिरना लगता कोई कर्तब।
दुनिया की भीड़ थी और मैं भीड़ में तन्हाँ
बस मैं था मेरा साया और साथ मेरे रब।
यारब यक़ीन हो चला है पुख़्ता मेरा अब
होते है तभी साथ सब रहते हैं पैसे जब।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’