कितना बदल गया इंसान
**बदल गया इंसान(ग़ज़ल)**
************************
कितना बदल गया इंसान हैं,
सबकुछ समझ बना अंजान है।
छोटे – बड़े सभी सम भार है,
उत्तम हुआ यही तो ज्ञान है।
स्वार्थी हुई दुनियादारी यहाँ,
ईमान जान बेईमान है।
बिल्कुल रही नहीं हैं रौनकें,
रास्ते मिले यहाँ सुनसान है।
खाली पड़े हुए हैं ओहदे,
घर – घर पले बढ़े दीवान है।
जिंदा हुए मरे मुरदे यहाँ,
दिखता गली-गली शमशान है।
नादान आज मनसीरत हुआ,
आवारगी बनी पहचान है।
**********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)