तुझमे है कितना गरल शेष
अब कायरता का पाठ पढ़ा कर, जन जनता में न भरो क्लेश।
अरे क्षमा करने वाले भुजंग कह, तुझमे है कितना गरल शेष।।
माना युद्ध नही है अंतिम द्योतन, यह घाव अनगिनत दे जाती।
सुनी मांगे क्रंदन स्वर और, दूध मुहें बालक बिन फटती छाती।।
पर सहना कितना और हमें है, कब करना हमको उनसे द्वेष।
अरे क्षमा करने वाले भुजंग कह, तुझमे है कितना गरल शेष।।
सहते सहते एक दिन तो कोई, हमे अंतिम निर्णय करना होगा।
जान रही गर तो भी देखो, बिन सम्मान हमारा ये मरना होगा।।
बर्दास्त की सीमा खत्म हुई तो, चींटी भी चढ़ी मस्तक गणेश।
अरे क्षमा करने वाले भुजंग कह, तुझमे है कितना गरल शेष।।
खून खराबा नही उपाय, यह बात तुम उनको भी समझा देते।
राह भटक बैठे हैं जो, जरा राह तुम उनको भी दिखला देते।।
ज़िंदा जीर्ण सा जीने से बेहतर, बन जाएं ऐतिहासिक अवशेष।
अरे क्षमा करने वाले भुजंग कह, तुझमे है कितना गरल शेष।।
कायरता की बातें क्यों करता, क्या वह तुझसे ज्यादा चपल है।
क्षमावान बन बचना चाहता, क्या वह कोई बाहुबली सबल है।।
कैसे वह मायावी रावण सा, पल पल है बदलता नित नए वेष।
अरे क्षमा करने वाले भुजंग कह, तुझमे है कितना गरल शेष।।
वो क्षमाशील प्रभु राम ने भी जब, अंततः इनको जान लियें।
कि खग जाने खग की ही भाषा, तो बाण सरासर तान लियें।।
तब बन अनुगामी उनका ही ले, खेंच तुरीण कर ध्वस्त निमेष।
देख क्षमा करने वाले भुजंग अब, तुझमे है कितना गरल शेष।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १८/०६/२०२०)