कितना खूबसूरत जहाँ है
मैं हरे बाग देखता हूँ, लाल गुलाब भी
खिलते हुए उन्हें तेरे और मेरे लिए
मैं सोचता हूँ कितना खूबसूरत जहाँ है
मैं नीला आसमान देखता हूँ, सफ़ेद बादल भी
उजला जगमगाता दिन और गहरी अंधरी रातें
मैं सोचता हूँ कितना खूबसूरत जहाँ है
इंद्रधनुष के सुन्दर रंग आसमान में बिखरे हुए
चेहरे भी लोगों के ऐसे ही रंगों में गुज़रते हुए
दोस्त मेरे मेरा हाथ मिलाकर हाल चाल पूछते हैं
पर शायद ये कहते हुए कि वो मुझे चाहते हैं
मैं बच्चों का रोना सुनता हूँ, उन्हें बढ़ते हुए भी
वो कुछ इतना सीखते हैं कि मैं जीवन में भी ना सीख पाऊँ
मैं सोचता हूँ कितना खूबसूरत जहाँ है
हाँ, मैं सोचता हूँ कितना खूबसूरत जहाँ है
–प्रतीक