कितना खुदगर्ज है इंसान
ओ इंसान, तून कितना खुदगर्ज है
पता नहीं चल पाता, तेरा क्या मर्ज है
तुझ को तो इंसान बनाया था उसने
तून खुद ही हैवान क्यों बन बैठा,ये दर्द है !!
तूने मंदिर बनाये, मस्जिद बनाई
रास्ते के रोड़े खड़े कर दिए जहान में
एक धर्म निभाने की खातिर
न जाने क्या क्या कर्म कर दिए, ये दर्द है !!
ओ इंसान तूने अपनी जात पात के झगडे
डाल डाल कर उलझा दिया मनुष्यता को
कभी देखा है किसी पक्षी को यह करते हुए
जो मंदिर, कभी मस्जिद पर जा बैठता है !!
कुछ सीखना है तो इन परिंदों से सीखो
जो अपनी जान कुर्बान कर देते हैं बे वजह
इंसान तो अपनी आन बान शान की खातिर
झगडे कर लेता है, बे वजह, बस यही दर्द है !!
अजीत तलवार
मेरठ