कितना आज़ाद है वो शख़्स
कितना आज़ाद है वो शख़्स
जिसको लालच की ज़ंजीर ने कभी जकड़ा नहीं
जिसका डर उसके भरोसों से बड़ा नहीं
जो इस जहां में झूठ के संग हुआ खड़ा नहीं
कितना आज़ाद है वो शख़्स।
कितना आज़ाद है वो शख़्स
जिसकी आँखों में अब भी शर्म कहीं बाकी है
जिसकी बातों में सच्चाई है, बे-बाकी है
जिसने दरिया-ए-मुश्किल में की तैराकी है
कितना आज़ाद है वो शख़्स।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’