कितना आराम करेगा तू
अरे उठ…और कितना आराम करेगा तू ?
रात को ठीक से सोया नहीं ?
रात का मौसम ठीक नहीं ?
नींद आ रही है तुझे अरे… चुप !
खुद से बस यही रिश्ता निभाता है तू ?
जीवन में क्या झक मराता है तू ?
एक मिनट क्या एक सेकंड और नहीं
अभी और इसी वक्त उठेगा तू !
अरे उठ और कितना आराम करेगा तू ?
यूं सो कर क्या मिलेगा तुझे ?
क्या खाक नाम करेगा तू ?
हालातों को और कितना बदनाम करेगा तू ?
जिंदगी अपनी और कितनी नीलाम करेगा तू?
इस समय यदि सोएगा, जीवन भर रोएगा तू
आराम फरमाने के लिए अपने को जीवन भर कोसेगा तू
अरे उठ… और कितना आराम करेगा तू ?
आग का गोला है यूं ही कैसे बुझेगा तू
आखिर कब खुद की पहचान करेगा तू?
आंखों में नींद है फिर भी जागेगा तू
लक्ष्य की चाह में आखिर कब भागेगा तू
रुकना नहीं है तुझे सिर्फ आगे बढ़ेगा तू
शारीरिक व मानसिक रूप से खुद से लड़ेगा तू
मुसाफिर तू आम नहीं सोना तेरा काम नहीं…
©अभिषेक पाण्डेय अभि
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