कितना अस्थिर
कितना अस्थिर
तुम्हारा धर्म
कितना अस्थिर है
जो डगमगा जाता है
आस-पास के
लोगों संग
खाने-पीने से
उठने-बैठने से
उन्हें छूने भर से
एक-दूसरे के यहाँ
आने-जाने से
मंगलवार को शेव करने से
शनिवार को नाखून काटने से
किसी के छींकने से
जाते हुए के पीठ पीछे से
आवाज लगाने से
दिन छिपने के बाद
झाड़ू निकालने से
बिल्ली के रास्ता काटने से
धर्म अस्थिर है तो
तुम स्थिर कहाँ होंगे
-विनोद सिल्ला