कितना अच्छा होता…
कितना अच्छा होता,
कि मानवता की संस्कृति से सगाई होती ।
सभ्यता की शहनाई बजती,
और तमन्ना की बधाई होती ।।
हर शक्स के चेहरे पर होता,
स्वाभिमान का शबाब ।
सच्चाई की जिल्द लगी होती,
अनुशासन की किताब ।।
समस्या शून्य जिंदगी होती,
हर कोई सदाचार का प्रणेता होता ।
कितना अच्छा होता,
हर आदमी बस भारत माँ का बेटा होता ।।
सर्वत्र गूँजता सत्य-अहिंसा और नेकी का पाठ ।
नफ़रत, भेदभाव की खाइयाँ दी जाती पाट ।।
स्वार्थ की लड़की से,
जलाते भ्रष्ट्राचार की चिता ।
बेइमानी को कफन उढ़ाकर,
कर देते दुनियाँ से विदा ।।
कितना अच्छा होता,
दिलों में रोशन होते एकता के दीप ।
आनंदपूरित मुस्कान से हँस-हँसकर,
समता का गीत गाता दिलीप ।।
कितना अच्छा होता,
देशभक्ति की कलम से लिखा होता,
शराफत का हर पन्ना ।
न रहती गरीबी, भूख, अवसरवादिता,
न रोती हर शक्स की तमन्ना ।।
युगों-युगों तक अमर रहेगा,
जग में बापू का नाम ।
सदा रहे सबके जीवन में,
सत्य-अहिंसा का पैगाम ।।