Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jul 2021 · 3 min read

किडनैपिंग

प्रकाश ने जब नजर उठाकर नेहा की ओर देखा , ‘ नेहा ने कुछ सकुचा , शरमा कर जमीन पर निगाहें टिका ली ‘। प्रकाश के साथ उसका रिश्ता एक नवीन आकार लेता जा रहा था । प्रकाश के लिए नेह भरा सम्बोधन , ‘ जीजू , क्या चाय बना लाऊँ , प्रकाश की स्वीकारोक्ति हाँ नेहा , थोड़ी सी कड़क । इस स्वीकारोक्ति में प्रेम की बू थी । नेहा भी हाँ प्रत्युत्तर देती । एक मोहिनी थी नेहा में , जो नेहा और प्रकाश को कस्तूरी गंध के सदृश एक दूसरे की तरफ खींच करीब ला रही थी । प्रकाश का नेहा को ” नेहू ” कहकर पुकारना मिश्री घोलने लगा था । नेहू ,
‘ क्या बनाया खाने में ‘ प्रकाश आवाज लगा कर पूछता ।
बीना जो नेहा की बड़ी बहिन थी , छुटकी को जन्म देने के बाद बीमार रहने लगी इसलिये प्रकाश के ज्यादातर काम नेहा को ही निबटाने होते थे । बीना जीजा साली के इस प्रेमपूर्ण सम्बन्ध से बिल्कुल अनजान थी । इस अज्ञानता के बीच प्रकाश और नेहा का प्रेम बरगद वृक्ष की तरह पनप रहा था ।
जब नेहा स्कूल जाती तो प्रकाश उसको बाइक से छोड़ कहता , ‘ नेहू अपना ख्याल रखना , छुट्टी होने पर मुझे फोन कर देना । मौन स्वीकारोक्ति दे नेहा छुट्टी होने पर स्कूल से बाहर निकल प्रकाश को फोन कर देती । प्रकाश भी जबाब में ” वेट आनली फार फाइव मिनट्स ” कह अपना आफीसियल काम छोड़ चला आता । नेहा बाइक पर बैठ जाती , बैठने के तरीके में भी एक आत्मविश्वास से भरे प्रेम की झलक मिलती । प्रकाश की कमर में हाथ डालकर बैठना उन दोनों के रिश्ते में प्रगाढ़ता ला रहा था । यही वजह थी कि प्रकाश को अपने अन्तस में प्यार का उद्दाम झरना बहता प्रतीत होता जिसकी परिणति जीजा साली के बीच अनचाहे प्रेम के रूप में हो रही थी ।
शाम के झुरमुट में जब लाइट नहीं थी तो बीना छुटकी पर पंखा कर रही थी। प्रकाश और नेहा भी वही बैठे थे । पर गर्मी की असहनशीलता के कारण प्रकाश के पीछे पीछे नेहा भी छत पर चली आई । छत पर खड़े दोनों बतिया रहे थे । एकाएक प्रकाश ने नेहा को बाहु पाश में बांध कहा ” नेहू , “आई लव यू मोर देन बीना ” नेहा इतना सुनते ही वृक्ष की सुकुमार लता की तरह प्रकाश से लिपट गई । फिर बीना के आवाज देने पर सकपकाती नीचे चली आई । प्रकाश के यह शब्द नेहा को प्रकाश के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित करने लगे । समर्पण भाव इतना अतिरेक था कि वे एक दूसरे के पास आने का अवसर ढ़ूँढ़ ही लिया करते थे । इसी भाव के कारण नेहा के गर्भ में प्रकाश का बीज फल फूल रहा था । नेहा के माँ बाप को पता लगने पर माँ ने नेहा को खूब खरी खोटी सुनाई और आनन फानन में उसका विवाह रवि के साथ कर दिया । ब्याह कर नेहा रवि के घर तो आ गई थी लेकिन मन और आत्मा प्रकाश के पास ही छोड़ आई । समय बीतता गया लेकिन रवि और नेहा नाम मात्र के पति पत्नी थे । दोनों के बीच कोई शारीरिक सम्बन्ध न था । एक रोज रवि को छोड़ नेहा प्रकाश के पास लौट आई ।
अब बेचारा रवि अकेला रह गया । दारू की आदत ने उसके विवेक को हर लिया था । जोरू का स्थान दारू ने ले लिया था । जिन्दगी में जो रिक्तता थी उसको रवि ने शराब , दारू में तलाशा । यही उसकी सहचरी और प्रिया थी । दिन रात इसी के साथ मस्त रहता था , दुनिया की खबर से बेखबर बड़ा ही सकून देती थी दारू ।दे भी क्यों न । क्योंकि वही तो उसकी सहचरी थी ।
विवाह से पूर्व रवि के विवाह को लेकर और अपनी जीवन संगिनी को लेकर जो अरमान थे , वे सब धूमिल हो गए थे उसकी जो भावनाएं थी उस पर नेहा ने डाका डाला था उसकी इच्छाओं , प्रेम पूर्ण भावनाओं की किडनैपिंग हो चुकी थी ।

78 Likes · 6 Comments · 389 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR.MDHU TRIVEDI
View all
You may also like:
हर हाल मे,जिंदा ये रवायत रखना।
हर हाल मे,जिंदा ये रवायत रखना।
पूर्वार्थ
2721.*पूर्णिका*
2721.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मुझे फ़र्क नहीं दिखता, ख़ुदा और मोहब्बत में ।
मुझे फ़र्क नहीं दिखता, ख़ुदा और मोहब्बत में ।
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
बचपन
बचपन
लक्ष्मी सिंह
*ख़ुद मझधार में होकर भी...*
*ख़ुद मझधार में होकर भी...*
Rituraj shivem verma
"हकीकत"
Dr. Kishan tandon kranti
सौदागर हूँ
सौदागर हूँ
Satish Srijan
पलक-पाँवड़े
पलक-पाँवड़े
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
चाहो न चाहो ये ज़िद है हमारी,
चाहो न चाहो ये ज़िद है हमारी,
Kanchan Alok Malu
नारी
नारी
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
नया मानव को होता दिख रहा है कुछ न कुछ हर दिन।
नया मानव को होता दिख रहा है कुछ न कुछ हर दिन।
सत्य कुमार प्रेमी
संतोष धन
संतोष धन
Sanjay ' शून्य'
श्रेष्ठों को ना
श्रेष्ठों को ना
DrLakshman Jha Parimal
नदी की तीव्र धारा है चले आओ चले आओ।
नदी की तीव्र धारा है चले आओ चले आओ।
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
राम तेरी माया
राम तेरी माया
Swami Ganganiya
** चीड़ के प्रसून **
** चीड़ के प्रसून **
लक्ष्मण 'बिजनौरी'
*मिट्टी की वेदना*
*मिट्टी की वेदना*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बिहार के मूर्द्धन्य द्विज लेखकों के विभाजित साहित्य सरोकार
बिहार के मूर्द्धन्य द्विज लेखकों के विभाजित साहित्य सरोकार
Dr MusafiR BaithA
मै अपवाद कवि अभी जीवित हूं
मै अपवाद कवि अभी जीवित हूं
प्रेमदास वसु सुरेखा
मातृत्व
मातृत्व
साहित्य गौरव
-- फ़ितरत --
-- फ़ितरत --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
#पैरोडी-
#पैरोडी-
*Author प्रणय प्रभात*
नींद ( 4 of 25)
नींद ( 4 of 25)
Kshma Urmila
पनघट गायब हो गए ,पनिहारिन अब कौन
पनघट गायब हो गए ,पनिहारिन अब कौन
Ravi Prakash
नज़्म/गीत - वो मधुशाला, अब कहाँ
नज़्म/गीत - वो मधुशाला, अब कहाँ
अनिल कुमार
अज्ञानी की कलम
अज्ञानी की कलम
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
अव्यक्त प्रेम
अव्यक्त प्रेम
Surinder blackpen
राख का ढेर।
राख का ढेर।
Taj Mohammad
झूठ न इतना बोलिए
झूठ न इतना बोलिए
Paras Nath Jha
चली ⛈️सावन की डोर➰
चली ⛈️सावन की डोर➰
डॉ० रोहित कौशिक
Loading...