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24 Sep 2021 · 1 min read

किडनी चोर (मार्मिक कविता)

किडनी चोर।

देखू-देखू केहेन जमाना आबि गेल
मनुखक हृदय भऽ गेल केहेन कठोर
सभ सॅं मुॅंह नुकौने, चुपेचाप
भागि रहल अछि एकटा किडनी चोर।

डॉक्टर भऽ के करैत अछि डकैति
कोनो ग़रीबक बेच लैत अछि किडनी
पुलिस तकैत अछि ओकरा इंडिया मे
मुदा ओ परा जाइत अछि सिडनी।

कोनो ग़रीबक किडनी बेचि कऽ
संपति अरजबाक केहेन ई अमानवीय भूख
केकरो मजबूरीक फायदा उठा कऽ
डॉक्टर तकैत अछि खाली अपने सूख।

केकरो जिनगी बॅंचौनिहार डॉक्टर रूपयाक लोभ में
बनि गेल आब किडनी चोर
छटपटा रहल अछि एकटा गरीबक करेजा
कनैत-कनैत सूखा गेलै ओकर ऑंखिक नोर।

मनुख आब केहेन लोभी भऽ गेल
आब ओ किडनी बेचब सेहो सीख गेल
राता-राति अमीर बनबाक सपना देखैत अछि
रूपया खातीर ओ किछू कऽ सकैत अछि।

मनुख भऽ के मनुखक घेंट काटब
कोन नगर में सिखलहुॅं अहॉं
आबो तऽ, बंद करू किडनी बेचबाक धंधा
मानवताक नाम सगरे घिनेलहुॅं अहॉं।

कोनो गरीबक किडनी बेचि कऽ
महल अटारी बनाएब उचित नहीं थीक
एहेन डॉक्टरीक पेशा सॅं कतहू
मजूरी बोनिहारी करब बड्ड नीक।

हम अहिं के कहैत छी यौ किडनी चोर
एक बेर अपने करेजा पर छूरी चला कऽ देखू
कतेक छटपटाइत छैक करेजा
एक बेर अपन किडनी बेचि कऽ तऽ देखू।

लेखक:- किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)

Language: Maithili
1 Like · 1 Comment · 940 Views
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