काश!
काश!
मैं भाँप होती ,और तुम
हवा
उड़कर तुममें समा जाती।।
काश!
मैं रेत होती, और तुम
समन्दर
किनारे में तुमसे मिल जाती।।
काश!
मैं क़ुरान होती,और तुम
आयत
पढ़कर तुम्हें समझ लेती।।
काश!
मैं चाशनी होती, और तुम
जलेबी
तुम्हारी जिंदगी में अपनी मिठास घोल देती।।
काश!
मैं गुलाब होती, और तुम
उसकी महक
तुम्हारे साथ खिलती, साथ झड़ जाती।।
काश!
मैं बहुत कुछ हो सकती
और तुम भी,
तो इस दिल की पुकार
और, मन की आस दोनों
कभी ना कभी
पूरी हो जाती।।