काश!
काश !
काश कि कोई युद्ध न होता, बच्चे युद्ध इतिहास न पढ़ते
राष्ट्रों में ईर्ष्या लोभ न होता, सह शांति परस्पर मिलकर रहते
सार्वभौमिकता सम्मानित होती, भू-भागों के कलह न होते
विकास मूल मंत्र तब होता, व्यापार परस्पर हर्षित हो करते।
विज्ञान कल्याण के पथ पर होता, शस्त्र अनुसंधान नहीं होते
न होते प्रक्षेपास्त्र, विस्फोटक, सभी शांति के वाहक होते
विशेष ध्यान शिक्षा पर होता, और सेहत की गारंटी होती घर-घर जोर संस्कृति पर होता, शिक्षा में नैतिक शिक्षा होती।
अपराध मुक्त समाज यह होता, भू पर कोई अपराध न होते
सुरक्षित महिलाएं , बच्चे होते, सभी निर्भय विचरण कर पाते
दहेज़ कानून का पालन होता, कोई भी बाल-विवाह न होते
वैधव्य कहीं अभिशाप न होता, खुद के घर वृंदावन होते ।
न गृह कलह, न जानें जातीं, नशा मुक्त समाज यह होता
काश कि जाति धर्म न होते, मानव-धर्म धर्म एक होता
शिक्षित, सभ्य समाज एक होता, भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी न होते
वन-वृक्षों का ध्यान हम रखते, कुदरत से हम हिलमिल रहते।
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/स्वरचित।