काश
काश !
“अरे ! कांता तुम आ गईं ?”
अमर एकाएक घर आई कांता की डबडबाई आँखें देख मन ही मन घबरा उठे। फिर भी अनभिज्ञ से बनकर बोले।
“गुड़िया के पास कौन है ?”
“कोई नहीं जी।”
“कमज़ोरी की वजह से अर्ध निद्रा में है। पास वाले बेड की अटेंडेंट को पाँच मिनट संभालने का बोल कर आई हूँ।”
” सुनिए! डॉ ने तुरन्त ब्लड का इंतजाम करने के लिए कहा है।”
“इसीलिए भागी चली आई हूँ।”
कांता सिसक रही थी।
“घबराओ नहीं। ऐसे हिम्मत नहीं हारते।”
कांता का हाथ पकड़ भगवान की तस्वीर के सम्मुख खड़े हो कर बोले –
” ये हैं न। इन्हीं ने दी है हमें गुड़िया। यही रक्षा करेंगे। ”
” चलो। गोविन्द भाई से मेरी बात हो गई है।” उनका ओ पोजिटिव ब्लड ग्रुप है। वे ब्लड डोनेट कर चुके हैं। अभी उनका भाई लेकर निकल चुका है। ”
” तब तक तुम फ्रेश हो जाओ।”
” लेकिन हम इतना समय नहीं ले सकते।” कांता के स्वर में कंपन था।
” डॉ ने अधिक से अधिक आधे घंटे में आ जाने की कहा है”
” वर्ना मेरी बेटी की जान को….. ”
कांता की रुलाई फूट पड़ी।
“संभालो खुद को ”
अमर भी घबरा रहे थे।
गोविन्द जी के भाई ब्लड ले आए।
कांता हड़बड़ी में बिना चप्पल पहने ही ताला बंद कर बाहर आ गई।
फिर भी दोबारा ताला लगाया और स्कूटी पर दोनों बेतहाशा भागे। कांता के हाथ में ब्लड की बोतल।
एकाएक रांग साइड से दो युवक अपनी बुलेट पर झूमते मस्ताते अमर की स्कूटी को टल्ला मारते हुए ये गए वो गए।
दोनों पति-पत्नी दूर जा गिरे।
कांता छिटक कर करीब 15 फुट दूर जा कर पड़ीं।
भीड़ इकट्ठा हो गई।
“अरे भाग गये साले….”
“अमीरों की बिगड़ी औलादें हैं……”
“गुंडे हैं गुंडे इस इलाके के……..”
जितने मुंह उतनी बातें।
बातें ज्यादा मदद कम।
कांता व अमर को कुछ- कुछ होश आया।
“अरे! मेरी बेटी………”
“उसे बचा लीजिए…..”
कांता पीड़ा से कराहती हुए भी संतान की याद में तड़प उठी।
किसी भद्र महिला ने सुन लिया और कांता ने अस्पष्ट सी वाणी में ही सारा किस्सा उन्हें सुनाया।
ब्लड की बोतल ढूंढी तो देखा सड़क पर फूट कर सारा ब्लड बह निकला था।
उस महिला ने अपने पति की सहायता से उन दोनों को अपनी कार से उसी अस्पताल पहुंचाया और उन्हें भर्ती कराया। इसके साथ ही गुड़िया के हालचाल पूछे मगर अफसोस वह तो कूच कर चुकी थी दुनिया से…. खून के अभाव में……
वह भद्र महिला व उनके पति उन दोनों की संभाल कर रहे थे। उनसे जब कांता व अमर ने बिटिया के हालचाल पूछे तो उनके आँखों से बहती अविरल गंगा-जमुना ने बिन बोले ही सब कुछ कह दिया था।
कांता फिर बेहोश हो गयी……..
अमर तो जड़वत रह गए… स्तब्ध…. सुन्न से….
काश !
उस दिन उन युवकों ने अपनी युवा ऊर्जा के जोश का दुरूपयोग कर ट्रैफिक नियमों को ताक पर न रखा होता…
यातायात के नियमों को जानना एक अलग बात है और उन्हें अपने जीवन में अपनाना एक अलग बात।
यातायात के नियम अपनाएं
अपने साथ दूसरे का भी जीवन बचाएं।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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