” काश “
हे श्रष्टि रचयिता !
कृष्ण बन कर
कर्म तुमने
नारायण सा किया ,
फिर क्यों तुमने
मनुष्य की तरह
मृत्यु को वर लिया ?
काश….
ऐसा हो जाता
कि बहेलिये का वो तीर
जिस वृक्ष की
लकड़ी से बना था
वो वृक्ष रोपने से पहले
खुद ही नष्ट हो जाता ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 15 – 02 – 2016 )