काश ! हर इंसान खुली किताब होता।
भगवान जाने ! लोगों की कथनी और करनी में,
बहुत फर्क क्यों होता है ?
दिल में कुछ और जुबान पर कुछ और ,
क्यों होता है ?
आखिर क्यों नहीं होती लोगो की फितरत ,
खुली किताब की तरह ?
जिसे पढ़ने में तो कोई कष्ट नहीं होता है ।
यदि लोग होते खुली किताब की तरह ,
तो क्या ही अच्छा होता ।
रिश्तों में न होती किसी तरह की उलझन और ,
गलत फहमियों को दूरियां बढ़ाने का
एक अवसर न मिलता।
काश ! हर इंसान खुली किताब होता।