काश वो पत्थर
काश वो पत्थर……………
वर्ष 1991 की बात है | यह सत्य घटना जबलपुर की है जिसे मध्य प्रदेश की संस्कारधानी के रूप में भी जाना जाता है | मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़कर रात के करीब 10:30 बजे अपने घर की ओर लौट रहा था | रास्ते में मैंने दूर से एक बड़ा सा पत्थर सड़क पर पड़ा देखा यह पत्थर सड़क को बीच से दो भागों में बांटने के लिए लगाया गया था | मैंने मन ही मन प्रण किया कि मैं इसे उठाकर सड़क के किनारे रख दूंगा | किन्तु जब तक मैं पत्थर वाली जगह के नजदीक पहुंचा तो पता नहीं कैसे मैं उस पत्थर को उठाना भूल गया | घर पहुंचकर याद आया कि मैंने उस पत्थर को सड़क के बीच से नहीं उठाया | घर उस जगह से करीब चार किलोमीटर दूर था इसलिए मैं वापस उस जगह नहीं जा सका |
अगले दिन सुबह के अखबार में छपी एक खबर ने मुझे अपराधी घोषित कर दिया | उस अखबार के पुख्य पृष्ठ पर उस पत्थर की वजह से करीब एक 24 वर्ष के लड़के के दूर तक घसीटकर मरने की खबर ने मुझे भीतर तक हिला कर रख दिया | मुझे समझ नहीं आ रहा था कि काश मैं वो पत्थर सड़क के किनारे रख देता | इस घटना के बाद मैंने प्रण कर लिया कि आज के बाद मैं जब भी सड़क के बीच किसी भी पत्थर को पड़ा देखूँगा उसे सड़क के किनारे रखूंगा चाहे मैं कितनी भी जल्दी में रहूँ | इस घटना को आज करीब 31 वर्ष हो गए हैं और आज तक मैंने हजारों पत्थर सड़क से उठाये हैं और अपने स्कूल के बच्चों को भी इस कार्य के लिए प्रेरित करता रहता हूँ | हमारा एक छोटा सा प्रयास किसी की जिन्दगी बचा सकता है | आप भी इस यज्ञ में अपनी आहुति देकर एक स्वस्थ समाज की कल्पना साकार कर सकते हैं |