“काश! लौट आता मेरा बचपन”
ए खुदा छिन लिया बचपन मेरा,मुझको कोई राह दिखा दे तू,
हो गया हूं बहुत नर्वस मै, मुझको मेरा बचपन लौटा दे तू।
बड़ा उपकार होगा तेरा, तुझसे आस लगाता हूं,
मेरा अर्जी कुबूल कर, तुझको आज बुलाता हूं।
बचपन की यादें सारी, बार बार मुझे रुलाती है,
बीते लम्हों की बातें, सारी रात जगाती है।।
वें सुबह की नन्हीं चिड़ियां जो,आकर रोज जगाती थी,
पंख लगा सपनों को मेरे, आसमां की सैर कराती थी।
आंखों से समंदर बह चला है,आज उन नदियों की तरफ,
जिस पर कभी पारा न था,आज लगे हैं लोग हर तरफ।
मेरे बचपन का बसंत, जब मेरे गांव में आती थी,
कोयल की मीठी मीठी स्वर, मेरे मन को भाती थी।
बाद पतझड़ के बहार बसंत,जब नव रुप धरा पाती थी,
बहे पछुआ मधुमास लेकर, बड़ैला ताल से आती थी।।
क्या ऐ बसंत दोस्ती के खातिर, मुझसे मिलने आते हो,
वर्ष भर ढ़ूढ़ तुमको, जाने जाने कहां छुप जाते हो।
स्नेह के सरिता में आज, हार गया हूं मैं तुमसे,
यह तो तुम्हारा स्वभाव है बसंत, जो हर वर्ष मिलने आते हो मुझसे,
ऐ बसंत अपनी दोस्ती के खातिर, ले लो आज एक कसम।
मुझको भी ऐसी वादियां दिखा, मुझको भी ले चल अपने संग।
मेरा बचपन मेरी तड़ पन, उम्र भर कर रह जाएगा,
कुछ तो कर ए बसंत फिर से, बचपन मेरा लौट आएगा।।
राकेश चौरसिया
9120639958