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3 Aug 2021 · 1 min read

काश.! मैं वृक्ष होता

रंग बिरंगे पुष्प खिलाता
मन भावन खुशबु फैलाता।

बिन मांगे ही फल देता
कुछ ना अपने लिए बचाता।

परोपकार में होता दक्ष
काश! मै बन जाऊँ वृक्ष।

प्रेम सुधा बरसात सब पर
चाहें खग हो, चाहे चौपाया।

नव जीवन भर देती सब में
मेरी ठंडी, शीतल छाया।

करता न्याय होकर निष्पक्ष
काश! मै बन जाऊँ वृक्ष।

©® डॉ. मुल्ला आदम अली
तिरुपति – आंध्र प्रदेश

Language: Hindi
4 Likes · 441 Views
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