काश! मैं भी बिहारी होता
व्यंग्य
काश! मैं भी बिहारी होता
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बिहार सरकार की दरियादिली देख
उसकी आत्मा कचोटने लगी,
वो सोचने लगा
काश!वो भी बिहार का निवासी होता
तो शायद वो भी आज जीवित होता
न ये दुर्दशा होती न अतीत बनता।
शायद सजा से भी बच जाता
अपना धंधा और साम्राज्य भी सुरक्षित होता
बेटा भाई भी साथ होता ।
परिवार रिश्तेदार भी सुख चैन की बंशी बजाते
ये दिन तो न देखना पड़ता
दहशत, हनक और जलवा भी बरकरार रहता
हमारा भी परिवार नेतामय हो जाता
सासंद विधायक मेयर, आदि
परिवार का हर सदस्य बन जाता
तब अपना भी महत्व, बिहारी बाबू की तरह बढ़ जाता,
हमारे लिए भी तब
सरकारी नियमों में बदलाव हो जाता,
और मैं खुली हवा में नेतागीरी की आड़ में
माफियागिरी भी शान से करता
किसी से भी नहीं डरता
आज अपने परिवार के साथ होता,
अपना महल भी शान से खड़ा होता,
सुर्ख़ियों में बना रहता
तब भौकाल कुछ और होता।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित