काश मेरी भी दादी होती
जो मुझे हँसाती, खेल खिलाती
मेरी खुशी में खुश हो जाती
कभी गोदी में बैठाकर लाड़ प्यार करती
तो कभी डाँट फटकार लगाती
और रोने पर वो मुझे चुप करवाती
मलीन शरीर देखकर मेरा
झट से मुझे वो नहलाती
नज़र दोष से बचाने के लिए
मेरे माथे पर वो काला टीका लगाती
ढेर सारी लोरीयाँ सुनाकर
अपने आँचल में सुला देती
गोदी में लेकर मुझे वो
हर शाम गाँव घुमा लाती,
लोगों का दिया यात्रा प्रसाद
वो मेरे लिए छुपाकर रखती
खुद नहीं खाती लेकिन मेरे लिए
अपनी धोती के पल्लू मे बाँधकर छुपाती
आती अगर दुःख विपदा मुझ पर
अपने ईष्ट के द्वार वो सिर नवाती
अपना सारा काम छोड़कर
वो सिर्फ मेरी ही रखवाली करती
आज दादी होती तो …
घर जाते समय उसके लिए
महँगी से महंगी सूती धोती ले जाता
‘देखो मेरा मिट्ठू लाया है, अच्छी है ना..?’
ऐसा कहकर वो लोगों को बताते न थकती
उस धोती को वो अपने संदूक में सम्भालती
और व्रत त्यौहारौं में ही उसे पहनती
क्योंकि दादी मैंने कभी देखी ही नहीं..
इसलिए जीवन मे दादी का अभाव होता है
अपनी दादी का हाथ थामकर ,
राह चलते बच्चों को देखकर ,
मैं हमेशा यही सोचता हूँ
काश मेरी भी दादी होती….
©® अमित नैथानी ‘मिट्ठू’