काश मुझे वो मिल जाते
ज़िक्र उनका आने से पहले, महफिल को छोड़ देते हैं हम !
वो ना रहे नज़दीक हमारे, रह गया बस उनका ग़म !!
गमे जुदाई किसे सुनाऊँ, बात समझ ना आती है !
अश्कों का दरिया बहता है, आँखें रोक ना पाती हैं !!
जो सुनता गमेदासताँ मेरी, वो मुझे बेवफ़ा रहता है !
ना जाने ये इश्क़ के दुश्मन, ये दिल क्या-क्या सहता है !!
करता हूँ उनका इन्तजार मैं, उम्मीदौं का आँचल थाम !
तन्हा रातें, उनकी बातें, आैर मुझे ना कोई काम !!
मेरी हर बात का लोगों ने, सदा बनाया अफसाना !
दिल में इक हलचल सी होती है, जब कहते हैं वो बेगाना !!
अल्लाह से इबादत करता हूँ, कि काश मुझे वो मिल जाते !
जख्मौं पर मरहम लगता, इस दिल के घाव भी सिल जाते !!
© अंशुल कुलश्रेष्ठ