काश मुझमें भी होता हुनर लाखों कमाने का
काश
मुझमें भी होता
बिना खून-पसीना बहाये
एकड़ भर ज़मीन से
लाखों कमाने का हुनर
और बन जाता मैं भी
वो अखबारी कृषक
पर मैं तो बना रहा
बरसों से वही
लुटा-पिटा किसान
जो 4-6 महीने
जी-तोड़कर
खून-पसीना एक कर
रात-दिन मेहनत करता है
और अंत में फिर भी
नहीं बेच पाता है अपनी फसलें
समर्थन मूल्य पर भी
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
बैतूल