“काश तुम समझ पाते”
“काश तुम Hug कर पाते”
*****
काश तुम समझ पाते
उस बूढ़ी माँ की पीड़ा,
उन आंखों में उमड़ते सैलाब को
जो तरस गयी हैं ममत्व को,
उसके आँचल में छिपे सात्विक प्रेम को ।
*****
काश तुम समझ कर पाते……..
बूढ़े बाप का समर्पण
उसके सीने में छिपी मीठी सी घुड़की को,
जीवन के अंतिम पड़ाव की लाचारी विवशता
तरसती ताकती बेजान सी पड़ी रूह को,
उन कंधों को जो शैशव से जवानी तक
,, तुम्हारा मजबूत आधार बने ।
*****
काश तुम समझ पाते………..
उस बिलखते शिशु के ममत्व को
जिस पर माँ-बाप का साया नहीं,
नंगे बदन, पेट की आग की पीड़ा को
दुलार, लोरी चॉकलेट से प्यार को,
भविष्य के ख़्वाब को
जो उसने संजों के रखे थे ।
*****
काश तुम समझ पाते……….
बस इंसानियत को
जिसका कोई धर्म कोई मज़हब न हो,
तोड़कर बेड़ियाँ, धर्मांध, कुप्रथाओं की
भर लेते आग़ोश उस अपनत्व को,
उड़ेलकर सर्वस्व हो जाते निःसार।
*****
काश तुम महसूस कर पाते………
उस अन्नदाता का दर्द
जिसका नंगा बदन
झुलस रहा जेठ की दुपहरी में,
प्रकृति का भी जिस पे रहम न हो
खिला देते दो निवाले उसे भी ।
******
काश तुम समझ पाते………
जिसने माँगा है दुआओं में
सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हें,
अपनी रूह में बसा हर ख़ुशी
निसार की तुम पर,
आशा का “दीप” जलाये
है जो बरसों से इंतजार में।
*****
काश कि तुम समझोगे एक दिन ……..
©कुलदीप दहिया “मरजाणा दीप”