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13 Feb 2024 · 1 min read

2. काश कभी ऐसा हो पाता

तुम फूल सी खुशबू फैलाती,
मैं धूल सा हर कहीं उड़ता जाता;
तुम रहा करती खुली आँखों में मेरी,
मैं बंद आँखों में सपने सजाता;
कच्ची धूप और मीठी हवाएं,
सुबह-शाम तुम को मिल जाती;
ये दिन ये रात एक सा हो जाता,
काश कभी ऐसा हो पाता।

नदियां जो कुछ हरकत बदले,
लहरों का सरगम बन जाता;
कोई नदी जो राह बदल ले,
झरनों का कलरव थम जाता;
बूंद-बूंद जो रिसती है धुन,
उस धुन से मझधार खेवाता;
सागर मरुस्थल एक स हो जाता,
काश कभी ऐसा हो पाता।

कमरे में सिर छुपाये जो बैठे हैं,
उनको भी ये सब दिखाता;
तुम्हारी ये पंखुरियाँ बीज और
पराग जो अनायास ही खो जाते होंगे;
उन्ही को चुनकर हाथों में भरकर,
फिर से कोई फूल खिलाता;
थोड़ी नई धूल बनाता,
काश कभी ऐसा हो पाता।

~राजीव दुत्ता ‘घुमंतू’

Language: Hindi
140 Views
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