2. काश कभी ऐसा हो पाता
तुम फूल सी खुशबू फैलाती,
मैं धूल सा हर कहीं उड़ता जाता;
तुम रहा करती खुली आँखों में मेरी,
मैं बंद आँखों में सपने सजाता;
कच्ची धूप और मीठी हवाएं,
सुबह-शाम तुम को मिल जाती;
ये दिन ये रात एक सा हो जाता,
काश कभी ऐसा हो पाता।
नदियां जो कुछ हरकत बदले,
लहरों का सरगम बन जाता;
कोई नदी जो राह बदल ले,
झरनों का कलरव थम जाता;
बूंद-बूंद जो रिसती है धुन,
उस धुन से मझधार खेवाता;
सागर मरुस्थल एक स हो जाता,
काश कभी ऐसा हो पाता।
कमरे में सिर छुपाये जो बैठे हैं,
उनको भी ये सब दिखाता;
तुम्हारी ये पंखुरियाँ बीज और
पराग जो अनायास ही खो जाते होंगे;
उन्ही को चुनकर हाथों में भरकर,
फिर से कोई फूल खिलाता;
थोड़ी नई धूल बनाता,
काश कभी ऐसा हो पाता।
~राजीव दुत्ता ‘घुमंतू’