काश! ऐसा होता
“काश! ऐसा होता”
पारमिता षड़गीं
एक अनोखा इज़ाफ़ा
तेरे मेरे कुर्बत में होती
एक रात होती
एक नींद होती
एक सपना होता
एक महक विखरती
एक अफसाना होता
और…….
एक अनोखा इज़ाफ़ा
तेरे मेरे कुर्बत में होती
एक तो मोम सा दिल है
दिल से सपनों का मरासिम
पुरानी है
एक चिराग काश!
कहीं से आता
खुद जलकर भी मोहब्बत
को जगाता
एक वजुद खुद के
तलाश में हूँ
एक तु है,जीस के सिवाय
वही नहीं मिलता
एक दिन काश! ऐसा होता
एक अनोखा इज़ाफ़ा
तेरे मेरे कुर्बत में होती।
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