काश अभी बच्चा होता
काश अभी बच्चा होता
मेरे खिलौने साथ रहते
मैं घर का शहनशाह होता ।
मेरा चिलाना मेरी मनमानी नही
मेरी आवश्यक्ता होती,
रो रो कर बुरा हाल कर लेना ,यह मेरी कमज़ोरी नही
मेरी प्रकृति होती
रात भर जगना और जगाना होता ।
नानी दादी का मनोरंजन करता
उनके चश्मों को मैं गिराता
दादा- नाना देख देख के होते खुश
ऐसा मिलेगा न कहीं सुख
मेरे मुख से निकला आवाज
किसी का सम्बोधन होता।
मेरी गर्जन से थर्राते लोग
करते पहले मेरा काम
दादी पूजा – पाठ छोड़
दौड़ी आती मेरे पास
गोद में उठाकर मेरा पूजा होता ।
मम्मी की मनमानी न चलती
मेरी हरकतों पर आहें भरती
कहती बाबू करो न हमको इतना परेशान
घर पर आए हैं नए मेहमान
यह देख- देख कर खुश होता
काश अभी बच्चा होता ।
साहिल की कलम से ☺️……