काशी – बनारस – वाराणसी
काशी – बनारस – वाराणसी कुछ भी कह लो…….कभी इसको पृथ्वी से अलग माना गया कभी पृथ्वी की जान जो भी है सबके दिलों में बसता है बनारस …..जिसने भी इस जगह को समझा वो इसी का हो कर रह गया क्योंकि इसको समझाना आसन नहीं है बनारस हर शहर से अलग है इसके वातावरण में अजीब सी मस्ती घुली है और ये मस्ती सदियों से चली आ रही है …इसका एहसास वही कर सकता है जो इस शहर की गहराई को समझे ( वो बात अलग है की हमने गंगा की गहराई को कम कर दिया है ) इस जगह का अपना अलग आनंद है यहाँ की रईसियत में जो सादगी है वो कहीं नहीं है आप कल्पना भी नहीं कर सकते इस सादगी की …मै BHU में पढ़ती थी हम Faculty जाते थे हमारे आगे – आगे ‘ आदरणीय एम. राजम ‘ चलती थी ….एक बार मै और मेरी दोस्तें बजरे पर एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था उसको देख कर नाँव से लौट रहे थे और नाव वाले से कह रहे थे जल्दी चलो हमारे साथ ‘ पंडित श्री किशन महाराज जी ‘ जी भी बैठे थे ..उन्होंने हमें देख कर पुछा… हॉस्टल जाना है देर हो रही है…हमने पुछा आपको कैसे पता ? हमारी बात पर वो हँसने लगे बोले तुम लोगों की जल्दबाजी देख कर पता चल रहा है…. संकटमोचन का कार्यक्रम देखने हम सब रात में जाते और सुबह वापस आते…वहां एक से एक आदरणीय कलाकारों को हम सुनते और देखते तथा जिस साधुवाद का आनंद हम लेते उसका वर्णन करना आसन नहीं है …किसी भी शहर में वो रस नहीं है जो बनारस में है और मज़े की बात तो ये है की इस शहर के नशे का आनंद आप बिना भांग के भी ले सकते है और यही है असली नशा जो बिना नशे के नशा देता हो एक सुरूर है इस नशे में …..’ बाबा विश्वनाथ की ये नगरी उन्हीं की तरह फक्कड़ और मस्त है ….यहाँ एकदूसरे के लिए भरपूर वक़्त है ‘…. ज़रा किसी से पता पूछ कर तो देखिए वो जनाब आपके साथ चल कर पते तक पंहुचा कर ही दम लेंगे ….है किसी शहर के लोगों में ये जज़्बा….इस शहर में रहने का आशीर्वाद सबको नहीं मिलता बड़े नसीब वाले है यहाँ रहने वाले ….पागलों की तरह दौड़ना नहीं सिखाता ये शहर ‘ कहता है आराम से यार सब हो जाएगा चिंता किस बात की है ‘ दूसरे शहरों में ‘ आराम हराम है ‘ और यहाँ ‘ आराम ही आराम है ‘ ….और क्यां – क्यां कहूं सागर को गागर में कैसे भरूँ ? जो भी यहाँ रहा है या रहता है वो ही ये समझ सकता है ‘ का रजा ‘ को ………………….
भक्ति का मज़ा लेना है तो आओ बनारस में
ज़िन्दगी का मज़ा लेना है तो आओ बनारस में
बिना नशे के नशा लेना है तो आओ बनारस में
यारों के साथ जीना है तो आओ बनारस में
‘का रजा’ का मजा लेना है तो आओ बनारस में
आकर यहीं के हो जाओ यारों बनारस में ‘ !!!!!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 04 /06 /12 )