काशी की होली
‘काशी की होली’
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काशी नगरी धूम मची है, अस्सी घाटों पर किलकारी।
तन-मन भीगा गंगा तीरे,रँग डालें भर-भर पिचकारी।
लाल अबीर कपोल रँगे हैं, नीले-पीले अंबर छाए।
हाथों में रंगों की रंगत,बरसाने की याद दिलाए।
होली खेलन देव पधारे,धूम मची द्वारे त्रिपुरारी।
तन-मन भीगा गंगा तीरे,रँग डालें भर-भर पिचकारी।
हलुआ, पूड़ी, भाँग सजे तट, नर-नारिन की टोली आई।
मस्त-मलंगों के दल आए, हँसती साथ ठिठोली पाई।
अमृतमयी बौछार गंग की, चंदन महके धूप धवारी।
तन-मन भीगा गंगा तीरे,रँग डालें भर-भर पिचकारी।
शंख-नाद घंटे मन मोहें, सत्संग पावन रंग लाए।
उर अनुराग भरा भोले का,अंग भक्ति का रंग रचाए।
बाजत ढोल लगा मेला सा, सब मिल गाएँ राग मल्हारी।
तन-मन भीगा गंगा तीरे,रँग डालें भर-भर पिचकारी।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’