काव्य से अमृत झरे,वेदका वह सार दें:- जितेंद्र कमल आनंद ( पो १३०)
सरस्वती — वंदना
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काव्यसे अमृत झरे, वेद का वह सार दें!
मॉ मेरी वरदायिनी साधकों को प्यार दें ।
ऑधियों से लड़ सके , भोर तक जो जल सके,
वर्तिका ऐसी सरस दीप को उपहार दें !
काव्य ऐसा रच सकें,तथ्य,लय,रस,छंदमय ,
खिल सके जिससे सुमन, वह सुधा- रसधार दें !
धार से, मँझधार से, पार जाने के लिए,
हो रहीं जर्जर मेरी , नॉव को पतवार दें !
हर समय ह्रदय रहे, यों सुगंधित पुष्प — सा ,
जो कमल मुरझे नहीं, वह सुधारस – धार दें ।
— जितेंद्रकमलआनंद
२-११-१६