“काव्य-संदेश”
“काव्य-संदेश”
✍️✍️✍️✍️
काव्य को अगर रस ने भिंगाई ,
तो कई भाव हैं, इसके स्थायी;
समझना चाहिए सब कवि को,
जिसने कोई भी कविता बनाई।
जब भाव ही नहीं रहेगा, तो;
क्या होगा यों ही,रस टपकने से;
यूं ही कविता नही बन जाती,
कहीं, कुछ भी लपकने से।
भाव का, यदि होगा अभाव;
नही होगा,जन पर कुछ प्रभाव;
भाव ही, कविता का सार है;
यहीं, टिकी साहित्य का संसार है।
कविता का जो भाव बताइये,
तभी खुद को भी, वैसा बनाइए;
उसके बाद ही, कोई राग गाइए,
काव्य को तब ही, सामने लाइए।
लेखन में सदा ही सही मात्रा;
और छंद सही से समझाइये,
लिखते समय मत घबराइए,
सदा ही मंद-मंद मुस्कुराइए।
छंद की कीमत जानिए,
अपने को अब लघु बताए,
काव्य, जग पे छोड़िए कि;
वो, किसको गुरू बताए।
काव्य सदा सजी हो, अलंकार से;
लाइए इसे सबके सामने, प्यार से;
इसमें अहंकार की झलक ना दिखे,
चाहे आप, कभी कुछ भी लिखे।
अलंकार तो, ऐसा “गहना” है;
उसी काव्य को अच्छा बनाता,
जिसने , हमेशा इसे पहना है;
बस, और मुझे कुछ नही कहना है।
स्वरचित सह मौलिक
….. ✍️ पंकज “कर्ण”
……………..कटिहार
२५/६/२०२१