काव्य मंजूषा
आज गगन की शरद पूर्णिमा
सारे जग को भाय रही है
काव्य मंच की सुंदर रचना
अंतर्मन को हरषाय रही हैं
कवि गणों की निर्झर लेखनी
अमृत रस बरसाय रही हैं
क्षमा करें कवि वृंद मुझे
मां शारदा लिखवाय रही हैं
ओम कहीं से कवि नहीं पर
मंच की रचनाएं रिझाय रही हैं
ओम प्रकाश भारती ओम्