काव्यमय जीवन
विधा- गीतिका
आधार छंद- लावणी छंद
समांत- आर, पदांत- दिया।
बहुत दिनों के बाद मीत मैं, लेखन को फिर धार दिया,
भूल नहीं पाया हूँ यारों, आप सभी ने प्यार दिया।
आप सभी को लिखते देखा, मिली प्रेरणा मुझको भी,
तब सोचा मैं भी लिख डालूँ, शब्दों को आकार दिया।
लिखना पढ़ना भूल रहा था, काम काज के बोझे से,
गुणीजनों के संगत ने ही, फिर मुझको आधार दिया।
चली लेखनी फिर से मेरी, गजल गीतिका छंद लिखा।
हुआ काव्यमय जीवन मेरा, गीतों में झंकार दिया॥
सत्य बात ही कहता जाऊँ, कभी किसी से बिना डरे।
मात-पिता ने ऐसा ही तो, अति सुंदर संस्कार दिया॥
मात शारदे ऐसी ममता, रखना सदा बालकों पर।
तुमसे ही है सारा जीवन, तुमने ही संसार दिया॥
दिनेश कुशभुवनपुरी