काल
तू चल या तू न चल,वह सदा ही चलता रहता है।
दिन रात और सर्दी गर्मी पतझड़ वसंत ये कहता है।
नैसर्गिक कृत्य उसी का है, जो हमें धरा पर ले आया।
इसीलिए नौ मास बाद ही, हम सबने जीवन पाया।
यह बाल्यकाल की किलकारी, ये ही यौवन का आकर्षण
नवना कटि का संकेत सदा वृद्धों का जीवन से घर्षण।
ये लालनहार, ये पालनहार, ये ही ममता के नर्म हाथ।
हो जाता जब पूर्ण लक्ष्य तब निर्मम ये ले जाए साथ।
कभी खुशियों की मुस्कान है, कभी हंसी ठिठोली रास रंग।
कभी कसक दर्द का जीवन में, हर रंग करे है ये बदरंग।
है लक्ष्य सभी का एक किंतु, कई मार्ग बनाए है उसने।
सरल, सुघड़ और वक्र मोड़, कुछ ऊबड़ खाबड़ भी उसने।
ज्यों खग नभ में विचरण करते,गजराज फिरे है वन में
कोई भी पाश न बांध सका, कोई लाख ठान ले मन में।
ज्यों रेत फिसलता मुट्ठी से, चुपके से निकल जाता है।
जब खुलती हैं आंखें तब, मन ही मन में पछताता है।